अपना गांव
- rajaramdsingh
- Feb 16, 2023
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एक समय था जब
सब कुछ छोड़ दिए थे
नाते रिश्तेदारो से भी
मुंह मोड़ लिए थे
होती किसी की शादी
तो समय का बहाना बनाते
दूर दराज से हीं
फोन कर रिश्तेदारी निभाते
वहां की कच्ची सड़कें
हमें अच्छे नहीं थे लगते
बारिश के दिनों में वहां
हमारे पांव थे फिसते
घर से थोड़ी दूरी पर
सवारी का उतार देना हमें अखड़ता था
एकाक किलोमीटर भी
पैदल चलना पड़ा तो बहुत खलता था
कहते थे वहां न खाने के लिए
ढंग का है कोई होटल
नाही पीने के लिए
मिलता मिनरल बोटल
लेकिन आज उसी गांव के लिए हम
लॉक डाउन तोड़कर निकल दिए हैं
हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करने
पैदल ही चल दिए हैं
रास्ते में खाने के लिए कोई
सूखी रोटी भी दे दिया तो उसका आभार मानते
तपती धूप में
पेड़ का छांव भी मिला तो नसीब जानते
खुले आसमान के नीचे रेलवे ट्रैक पर भी
सोने को मिल जाय तो समझते नसीब
करते अपनों को याद
कहते तू हो खुशनसीब
पढ़ाई छोड़ने के बाद
जिसे कभी देखने भी नहीं थे जाते
उसी स्कूल ने शरण दिया है
जहां सब लोग कोरोंटीन किए जाते
लेकिन सच है धूप से ब्याकुल होने पर
पीपल देता छांव
मां की ममता देने वाला
होता *अपना गांव * ।।
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राजाराम सिंह , नवी मुंबई
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