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दे दो एक उपहार

  • rajaramdsingh
  • Oct 18, 2024
  • 2 min read

Updated: Oct 18, 2024

केक काटकर जन्मदिन मनाते ,

पहनते सुंदर विदेशी परिवेश ,

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना ,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


करूं अपनों का व्यक्त आभार ,

या खेद प्रकट करने पर विचार ।

छोड़कर अपनी सभ्यता संस्कृति ,

करते पश्चिमी सभ्यता से प्यार ।।

नहीं डरेंगे डंके की चोट पर कहेंगे ,

अपनी संस्कृति है सबमें विशेष ।

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना ,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


पूजा करते बुझाके कैंडल ,

खाते पहनकर पैर में सैंडल ।

नहीं देखते अपने पराए ,

पीकर दारू खुश शिष्ट मंडल ।।

खुशी के हर मौके को हम ,

बांटकर लड्डू बनाते थे विशेष ।

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


हमारी संस्कृति करे इशारा ,

तमसो मां ज्योतिर्गमय प्यारा ।

फंसते जा रहे दल दल में हम ,

कैसे मिलेगा इससे छुटकारा ।।

खाते खुशियों में हम पिज्जा ,

बिगड़ा स्वास्थ्य बचा अवशेष ।

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना ,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


नहीं चलेगा अब कोई बहाना ,

गैर धातु के बर्तन में छोड़ो खाना ।

तांबा फूल पीतल या चांदी ,

भोज भात में केला पत्ता लाना ।।

हमारे बुजुर्ग की जो है धरोहर ,

उसे बनाओ मिलजुलकर विशेष ।

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना ,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


जिसने उजाड़ा अनेकों घर ,

मचाया दारू घर घर कहर ।

फिर भी उसे हीं हम अपनाते,

जिसमें दिखता सदैव जहर ।।

खाओ कसम उसे दूर हटाओ ,

जो है विदेशों के लिए विशेष ।

छोड़ रहे बड़ों को शीश झुकाना ,

जो देती हमें खुशियां अशेष ।।


दे दो मेरे जन्मदिन पर एक छोटा उपहार ,

धूम्रपान से तलाक ले करो अपनों से प्यार ।

रहोगे स्वस्थ तो हरा भरा रहेगा परिवार ,

नहीं तो बीबी बच्चों से होगा सदा तकरार ।।

करता हूं आप सबों से हाथ जोड़कर विनती,

भारतीय संस्कृति है सबसे विशेष ।

मत छोड़िए बड़े बुजुर्गों को शीश झुकाना ,

जो देती है खुशियां अशेष ।।

****************************************

राजाराम रघुवंशी,नवी मुंबई, 18 Oct 2024

 
 
 

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