प्रजातंत्र की पीड़ जला
- rajaramdsingh
- May 30, 2023
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भोले की पत्नि पार्वती,
हैँ ब्रह्मदेव की सरस्वती।
विष्णुज़ी की माता लक्ष्मी,
करते हैँ जिनकी आरती ।।
देख रबैया लोकतंत्र का,
विपक्षी का विश्वास हिला।
जगह थी जो अर्धांगिनी की,
दिखे वहाँ पर ओम बिरला ।।
शास्त्र कहे अर्धांगिनी बिना,
होता अधूरा वैदिक पूजा।
साथ नहीं अगर हो पत्नि,
तो सोचते उपाय दूजा ।।
याद करें रामेश्वरम को,
ज़ब पूजा किये थे रामलला।
जगह थी जो अर्धांगिनी की,
दिखे वहाँ पर ओम बिरला ।।
है सेंगोल राजतन्त्र प्रतीक,
सत्ता हस्तातरण में निर्भीक।
पहलीवार लोकतंत्र मंदिर में,
स्थापित कर बजा संगीत।।
किस प्रजातात्रिक देश में ?
हुआ जनता का इससे भला ?
जगह थी जो अर्धांगिनी की,
दिखे वहाँ पर ओम बिरला ।।
प्रजातंत्र का यह नया मंदर,
बनते कानून हैँ जिसके अंदर।
आमंत्रित कुछ अपराधियों का,
कर रहा विरोध था जंतर मंतर।।
दिखे पीटते न्याय मांगने वाले,
पुलिस के हाथों मर्द महिला।
जगह थी जो अर्धांगिनी की,
दिखे वहाँ पर ओम बिरला ।।
करते महिला उत्थान की बात,
पर छोड़ रहे हैँ उनका साथ।
महामहिम महिला राष्ट्रपति,
बैठी रही धर हाथ पर हाथ।।
बहुत हो चुका राजतंत्र,
अब प्रजातंत्र की पीड़ जला।
जगह थी जो अर्धांगिनी की,
दिखे वहाँ पर ओम बिरला।।
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राजाराम सिंह, 28 मई 2023
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