वर्षगांठ
- rajaramdsingh
- Jul 6, 2024
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सुहाने सलोने सुंदर परिवेश ,
खाने में बनते व्यंजन विशेष ।
करतल ध्वनि में कटे केक तब ,
मिलती खुशियां अदभुद अशेष ।।
करूं अपनों का व्यक्त आभार ,
या खेद प्रकट पर करूं विचार ।
अपना रहे रीति रिवाज पश्चिमी ,
बिन जाने करे उसका प्रचार ।।
करते पूजा बुझाकर कैंडल ,
पहन जूता चप्पल सैंडल ।
फूक मारते, फोड़ते फुग्गा ,
जूठे केक खा खुश हैं मंडल ।।
भारतीय संस्कृति करे इशारा ,
तमसो मां ज्योतिर्गमय हमारा ।
फंसते जा रहे हम दल दल में ,
कैसे मिलेगा उससे छुटकारा ।।
बचानी है अपनी संस्कृति ,
अपनाएं अपनी रिवाज रीति ।
वस्त्र आभूषण भाषा त्योहार ,
करें भारतीय संस्कृति से प्रीति ।।
नहीं तो एक दिन पछताओगे ,
नाव में छेद कर उसे डूबाओगे ।
हो भले हीं सच्चे सपूत पर ,
सदैव कपूत हीं कहलाओगे ।।
तो क्या हम छोड़ सकते हैं ? ,
केक काटकर खुशियां मनाना ,
संस्कृति मिटा शहंशाह कहलाना ।
वैवाहिक वर्षगांठ या जन्मोत्सव ,
पर जलते दीप या कैंडल बुझाना ।।
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राजाराम रघुवंशी,नवी मुंबई,6July 2024
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